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बंजर भूमि में बायोडायवर्सिटी पार्क बनाने वाले सीआर बाबू

आज यमुना बायोडायवर्सिटी पार्क को देखकर अंदाजा लगाना मुश्किल है कि इसे इंसान ने बनाया है। इस लेख में, हम बाबू, "ग्रीन डॉक्टर" के बारे में बात करेंगे

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सीआर बाबू – द ग्रीन डॉक्टर

सीआर बाबू दिल्ली विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति और विश्वविद्यालय के तहत सेंटर फॉर एनवायरमेंट मैनेजमेंट ऑफ डिग्रेडेड इको सिस्टम ( सीएमईडीई ) के प्रमुख हैं। बायोडायवर्सिटी पार्क का विचार 2001 में पैदा हुआ था जब दिल्ली पर्यावरण विभाग द्वारा आयोजित एक सम्मेलन में बाबू ने जैव विविधता के तीव्र नुकसान पर प्रकाश डाला था। स्थानीय प्रजातियों के विलुप्त होने पर उनके भाषण ने तत्कालीन उप राज्यपाल विजय कपूर का ध्यान आकर्षित किया।

यमुना बायोडायवर्सिटी पार्क

2001 में जब सीआर बाबू को दिल्ली में यमुना तट पर एक जैव विविधता पार्क बनाने का कार्य दिया गया तो वे हैरान रह गए क्योंकि उस 156 एकड़ की जमीन पर केवल कुछ नमक के साथ संतुलित रहने वाली झाड़ियां ही उपलब्ध थी। इस प्रोजेक्ट के लिए दिल्ली के निकटतम जगतपुर गांव की भूमि तय की गई किंतु उस जमीन में 20 फीट की गहराई पर भी अत्यधिक खारा पानी प्राप्त हो रहा था। उस समय इस भूमि पर पार्क बनाना असंभव प्रतीत हो रहा था।

आज यमुना बायोडायवर्सिटी पार्क को देखकर अंदाजा लगाना मुश्किल है यह मानव द्वारा निर्मित है और यह इतनी बंजर भूमि पर बनाया गया है। बाबू ने इस प्रोजेक्ट को चुनौती की तरह स्वीकार करके उसे सफल बनाया। ये पार्क विश्व स्तर पर अपनी तरह का पहला पार्क है। पार्क अब हजारों वन्य समुदायों, फल देने वाली प्रजातियों, औषधीय जड़ी बूटियों, जैविक रूप से समृद्ध भूमि है। यह पार्क अब सैकड़ों जानवरों, पक्षियों, तितलियों, कीड़ों, वन्यजीवों को अपनी तरफ आकर्षित करता है और उनका का घर है।

वनस्पति

खोई हुई प्रजातियां फिर से दिखने लगी हैं और एक बार फिर से हरियाली बढ़ रही है। बाबू कहते हैं कि 40-50 पौधों के समुदायों की पहचान करके पार्क के साइड में लगाए गए हैं। प्रारंभ में 2 वर्षों तक टीम को सफलता हासिल नहीं हुई क्योंकि अधिकांश पौधों के समुदाय अत्यधिक नमक की वजह से खत्म हो जाते थे। फिर उन्हें खारे जल के इलाके में घास की कुछ प्रजातियां मिलीं और इसी घास ने मिट्टी को 12 पीएच से 7 पीएच कर दिया। प्रारंभ में इस भूमि की सफाई की और भूमि नीर्माण के लिए सामग्री का उपयोग किया ।

सुधार के पहले वर्ष में ही हजारों प्रवासी पक्षी यहां पहुंचे। इस जमीन में तीन मंजिला वन समुदायों को विकसित करने में लगभग 10 साल लग गए जहां 45 फीट ऊंचे पेड़ भी है। साल 2016 में इस भूमि ने एक तेंदुए को आकर्षित किया। दिल्ली के निकटतम क्षेत्र में पाए जाने वाले हॉग हिरन जो पूर्ण लुप्त हो चुके थे उनकी वापसी भी हुई और यहां पर उन्होंने अपना घर भी बना लिया है। इसी तरह लगभग 70-80 साल पहले खोए हुए सिबोल्ड साप की भी वापसी हुई।

दिल्ली के फेफड़े – जैव विविधता पार्क

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में अब सात जैव विविधता पार्क हैं जिन्हें ऐसी बंजर भूमि पर विकसित किया गया है। इन पार्क को बनाना हमेशा से ही अत्यधिक कठिन काम रहा है किंतु सफल प्रयासों से इन्हें पूर्ण भी किया गया है। अरावली जैव विविधता पार्क को चट्टानी आवास पर विकसित किया गया है। इसी तरह कमला नेहरू रिज, तुगलकाबाद जैव विविधता पार्क और अन्य पार्कों में बंदरों के खतरे, आक्रामक प्रजातियों से खतरे और जलवायु जैसे चुनौतीपूर्ण समस्याएं थी।

81 वर्ष के होने के बाद भी बाबू आज भी जैव विविधता पार्क कार्यक्रम का संचालन जारी रखे हैं। यह जैव विविधता पार्क दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में से एक दिल्ली के फेफड़े हैं। तीन मंजिला वन, प्रदूषकों, विशेष रूप से PM1 और PM2 को छानने में मदद करता है। यह कार्बन पृथक्करण में मदद करते हैं क्योंकि मिट्टी में भारी मात्रा में कार्बन जमा होती है। दिल्ली के प्रदूषण को कम करने में ये अपना सफल योगदान देते हैं।

ये भूजल को भी रिचार्ज करते हैं और बाढ़ के पानी को एकत्रित करते हैं। नदियों के कायाकल्प में योगदान देते हैं। पिछले साल मानसून के दौरान सात जैव विविधता पार्कों द्वारा 1.4 मिलियन गैलन बारिश को संग्रह किया गया था। समृद्ध पौधों के संसाधनों का उपयोग दवा विकास के लिए किया जा सकता है। ये पार्क जनता को मनोरंजन प्रदान करते हैं और ईको-पर्यटन को बढ़ावा देता है। वहीं छात्रों द्वारा इन पार्कों के माध्यम से व्यवहारिक पर्यावरण शिक्षा प्राप्त की जाती है।

अन्य राज्य में जैव विविधता पार्क

अन्य राज्यों ने अपने शहरों के लिए जैव विविधता पार्क मॉडल का पालन करना शुरू कर दिया है। केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने सभी मुख्यमंत्रियों को प्रत्येक राज्य की राजधानी और सभी जिला मुख्यालयों में जैव विविधता पार्क बनाने का निर्देश दिया है। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, और छत्तीसगढ़ सहित कई राज्यों ने पार्क बनाना शुरू कर दिया है। बाबू के जैव विविधता पार्कों के कर्मचारी इन राज्यों के अधिकारियों को मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।

सीएमईडीई मैं जैव विविधता पार्क कार्यक्रम के प्रभारी वैज्ञानिक फैयाज खुदसर ने कहा कि जैव विविधता पार्कों को बनाए रखना एक मुश्किल काम है। स्थापना के बाद इसके अस्तित्व के लिए दिन रात की निगरानी की आवश्यकता होती है किंतु फिर भी बाबू के संकल्प से इस प्रोजेक्ट को पास किया गया और आज पूरी दुनिया इनके साहस हो देख रही है। बांग्लादेश और श्रीलंका ने भी जैव विविधता पार्क विकसित किए हैं।

दिल्ली को इन पार्कों की आवश्यकता क्यों है

शहरी फैलाव :- दिल्ली भारत की राजधानी है इसीलिए यहां पर नई नई इमारतों के निर्माण की वजह से इस शहर के क्षेत्रफल का फैलाव तेजी से हो रहा है और इस काम के लिए बड़े-बड़े जंगलों को काट दिया जाता है। उन जंगलों में रहने वाले लुप्तप्राय प्रजातियों के रक्षा के लिए ऐसे पार्कों का निर्माण आवश्यक है।

वायु और जल प्रदूषण,:- दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण की वजह से जलवायु का असमय परिवर्तन जारी है। इस परिवर्तन को संतुलित रखने के लिए पर्याप्त मात्रा में पेड़ पौधों का होना आवश्यक है और वृक्षों का विस्तार इन्हीं पार्कों से संभव है।

भूमि क्षरण :- राजधानी दिल्ली में बरसात के मौसम में बाढ़ जैसी समस्याएं उभरती रहती हैं। पेड़ पौधों की कमी से भूमि क्षरण की समस्या भी उत्पन्न हो जाती है जिसकी वजह से लोगों के आवास को भारी क्षति पहुंचती है और इसे रोकने के लिए पार्कों का विस्तार आवश्यक है।

जनसंख्या दबाव :- राजधानी की बढ़ती जनसंख्या के आवास हेतु अत्यधिक जमीन की आवश्यकता पढ़ती है और इसके लिए जंगलों को काटना आवश्यक हो जाता है। किंतु कटे हुए पेड़ पौधों से मिलने वाली ऑक्सीजन की भरपाई के लिए जैव विविधता पार्कों को बनाना होगा।

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