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लैकोन्स: जानवरों के विलुप्त होने को रोकने वाली प्रयोगशाला

लैकोनेस से मिलें। यह प्रयोगशाला न केवल विलुप्त होने का विरोध करती है, बल्कि वन्य जीवों के रख-रखाव के लिए काम करती है। अधिक पढ़ें।

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स्थापना

लेकोन्स लैब की स्थापना लुप्तप्राय प्रजातियों के संरक्षण के लिए डीएनए क्षेत्र के जनक लालजी सिंह द्वारा 1998 में हैदराबाद में की गई थी। इस लैब की स्थापना के लिए सेंट्रल जू अथॉरिटी ऑफ इंडिया, सीएसआईआर और आंध्र प्रदेश सरकार ने भरपूर सहयोग दिया। 2007 में इस लैब को भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम द्वारा राष्ट्र को समर्पित किया गया था। भारत के वन्यजीवों के संरक्षण के लिए इस लैब को भारत का पहला आनुवंशिक बैंक भी माना जाता है।

लेकोन्स प्रयोगशाला

धब्बेदार और चित्तीदार हिरन जो जंगल में नही बल्कि कृत्रिम गर्भाधान द्वारा बनाने में लेकोन्स लैब सफलता हासिल कर चुकी है। लुप्तप्राय प्रजातियों के संरक्षण के लिए लेकोन्स और उसके वैज्ञानिकों ने कश्मीरी हंगुल हिरन, निकोबार ब्लू रॉक कबूतर, माउसडियर और छत्तीसगढ़ भैंस को पाला है। सही समय में इस लैब के काम की शुरुआत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि भारत में सभी प्रजातियों में से 14% विलुप्त होने की कगार में हैं और इन विलुप्त होने वाली प्रजातियों को इस लैब के प्रयासों से बचाया जा रहा है।

वर्तमान में इस लैब में मात्र सात वैज्ञानिक मौजूद हैं फिर भी ये संरक्षण प्रजनन और सहायक प्रजनन जैसे विचारों का प्रयोग करके लुप्तप्राय जीवों की श्रंखला को बचाने के प्रयास में निर्णायक प्रगति पर हैं। यह भारत में एक मात्र प्रयोगशाला है जिसने वन्यजीवों से वीर्य को और मादाजीवों से अंड संरक्षण के तरीकों को विकसित किया है। यह लैब लुप्तप्राय प्रजातियों को पुनः उत्पन्न करने के लिए आधुनिक जैव प्रौद्योगिकी विधियों का उपयोग करती है।

आनुवांशिक बैंक

यहीं पर भारतीय वन्य जीवो का आनुवंशिक संसाधन बैंक है जोकि प्रजाति पुनर्प्राप्ति परियोजना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। वैज्ञानिकों ने बाघ, शेर, जंगली कुत्ते और तेंदुए सहित 23 जंगली जानवरों की आनुवंशिक सामग्री को भी सुरक्षित रखा है जो कि भविष्य में इस योजना को सफल बनाने में बहुत काम आएंगी। हैदराबाद में नेहरू जूलॉजिकल पार्क और देश भर के विभिन्न चिड़ियाघरों में किसी जानवर की मृत्यु होती है तो लेकोन्स को सूचित किया जाता है और इस लैब के सदस्य मृत जानवर से प्राप्त होने वाले शुक्राणु कोशिकाओं को पुनः कार्य में लाने हेतु एकत्रित कर लेते हैं। जो बाद में भ्रूण स्थानांतरण के लिए उपयोगी होते हैं। इस बैंक में 12000 शीशियों को रखने की सुविधा है।

सफल संरक्षण और प्रजनन

लेकोन्स ने नेहरू जूलॉजिकल पार्क के सहयोग से एक सफल संरक्षण प्रजनन कार्यक्रम के माध्यम से भारतीय माउस डियर को विलुप्त होने से बचाया है। यह भारत में पाया जाने वाला सबसे छोटा हिरन है। जुलाई 2018 में 8 माउस हिरन को छोड़ा गया था उनके बचने के उपरांत 116 अन्य माउस हिरणों को जंगल में छोड़ दिया गया। जिसकी वजह से लगातार इन में वृद्धि देखने को मिली है। कश्मीर का गौरव कहा जाने वाला हंगुल हिरन अब केवल दाचीगाम राष्ट्रीय उद्यान तक ही सीमित रह गया है। इन हिरनों की संख्या 1990 के दशक में लगभग 5000 मानी जाती थी जो लगातार गिरती जा रही है और 2017 की गणना के हिसाब से मात्र 182 बची है जिसके बाद अब लेकोन्स इस प्रजाति को बचाने में मदद कर रहा है।

लेकोन्स का विशेष योगदान

लेकोन्स का एक और महत्वपूर्ण योगदान मवेशियों के लिए गर्भावस्था से पहले पता लगाने वाली किट का विकास करना है जिसका उपयोग देशभर के डेरी किसान कर सकते हैं। यह तकनीक वरिष्ठ वैज्ञानिक जी उमापति द्वारा पेटेंट कराया गया है। इस उपकरण का प्रयोग अफ्रीका में भारी मात्रा में किया जाता जा सकता है और यह दुनिया के बाकी हिस्सों के लिए भी उपयोगी हो सकता है जिसकी वजह से भविष्य में पूरी दुनिया से इस किट की डिमांड बड़ सकती है।

लेकोन्स लैब – कोविड 19

लेकोन्स लैब ने कोविड -19 महामारी के दौरान भी चुनौतियों का सामना किया। अगस्त 2020 में, इसने संभावित SARS-COV-2 संक्रमण के लिए जंगली जानवरों का परीक्षण शुरू किया। कार्तिकेयन वासुदेवन ने कहा है कि हमने एक तकनीक विकसित की है और SARS-CoV-2 के लिए एशियाई शेरों जैसे जंगली और मांसाहारी जानवरों के परीक्षण पर काम किया है और वायरस का पता लगाया है।

वन्यजीवो के अपराधों को सुलझाने में सहयोग

लेकोन्स वनवासियों और पुलिस को वन्यजीव अपराधों का पता लगाने में भी मदद करता है। वरिष्ठ वैज्ञानिक अजय गौर उस प्रयोगशाला का नेतृत्व करते हैं जो शिकारियों को पकड़ने के लिए पके और सूखे मांस, पंजे, शार्क के पंख, अंडे के छिलके, जानवरों के बाल, हड्डियों, हाथी दांत, सींग, कछुए के खोल, पंख और मछली के तराजू जैसे जब्त वन्यजीव सामग्री से डीएनए निकालती है। वासुदेवन कहते हैं कि लाकोन्स की मदद से 3,000 से अधिक वन्यजीव अपराध के मामलों को सुलझाया जा चुका है और ये संख्या भविष्य में और भी बढ़ाने की कोशिश करेंगे।

वन्यजीव रोगों के समाधान

लेकोन्स लेब ने चिड़ियाघर और वन्य जीव अभ्यारण्यों में लुप्तप्राय जानवरों में परजीवी, जीवाणु और वायरल रोग का पता लगाने के लिए डीएनए आधारित तकनीक विकसित की है। डीएनए-आधारित तकनीकों का उपयोग करते हुए, लेकोन्स वन्यजीव रोगों का समाधान करता है। उमापति और उनकी टीम ने आठ पीढ़ियों में 36 कैप्टिव-ब्रेड पिग्मी हॉग पर भी शोध किया और आनुवंशिक इनब्रीडिंग के कोई संकेत नहीं पाए। लेकोन्स लैब के वैज्ञानिकों द्वारा बाघों और शेरों में गर्भावस्था का पता लगाने के लिए उस तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है जिसके माध्यम से बाघों और शेरों को किसी भी प्रकार की क्षति नहीं होती है।

वैज्ञानिकों द्वारा मवेशियों के मूत्र और गोबर के नमूनों के परीक्षण के लिए जिस किट का प्रयोग किया जाता है उसका इस्तेमाल किसान या खेत के मजदूर भी कर सकते हैं। इस तकनीक की वजह से दुग्ध उत्पादन में भी बढ़त हुई है। लेकोन्स लैब के कथक प्रयासों की वजह से लुप्तप्राय जानवरों की समस्यायों के समाधान पर काफी काम किया गया है और लेकोन्स को इसका अच्छा परिणाम भी प्राप्त हुआ है। इनके परिणामों को ध्यान में रखते हुए फैसला लिया गया है कि अब लेकोन्स लैब में विलुप्तीकरण के नजदीक जाने वाले जंगली पेड़ पौधों पर भी शोध किया जाएगा और उनकी समस्याओं के समाधान पर भी काम किया जाएगा।

आज के इस टेक्नोलॉजी की तरफ बढ़ते युग में शायद ही किसी का ध्यान जानवरों की विलुप्तीकरण पर पड़ रहा हो लेकिन हैदराबाद में स्थित LaCONES (Laboratory for the Conservation of Endangered Species) लैब आज भी इस समस्या पर अपना ध्यान केंद्रित किए हुए है।

परिचय

लेकोन्स हैदराबाद में स्थित एक लैब है जहां पर जानवरों के विलुप्तीकरण के कारणों पर अध्ययन करके उसके समाधान पर काम किया जाता है और ये अपने प्रयासों में सफल भी हो रही है।

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